बुधवार, 30 जुलाई 2008

क्यों आते हो...छलकर चले जाते हो..

आ कर
फ़िर चले जाते हो
जैसे
तपती दोपहरी
कोई
तलाशे छांह
एक पल की...
आते हो
सुकून पाते हो
भावनाओं के समंदर में
तनहा छोड़ जाते हो
क्यूँ आते हो
फ़िर चले जाते हो......
आते हो
फ़िर लुभाते हो
अपने पल-दो-पल
संग बिताते हो
खुशियाँ पाते हो
फ़िर मुझे तपता हुवा
मरुस्थल में तनहा
छोड़ जाते हो...
छलकर जाते हो
क्यों आते हो
बार-बार
फ़िर तुम
मेरी जिन्दगी में.....

मंगलवार, 29 जुलाई 2008

इंतज़ार....मिट जाने का...


दीपों सा
हमको जीना हैं
अपने आंसू ही
पीना हैं
औरों की खुशियों की खातिर
तिल-तिल जीना
और
मरना हैं.

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

समंदर........मेरी प्रीत का..

समंदर लहराता रहे
चंचल नयन
मेरी प्रीत का....
मुस्कान थिरकती रहे
गुलाबी अधर
मेरी प्रीत की......
अबीर लुढ़का रहे
सुर्ख गालों पर
मेरी प्रीत का....
एक कोना महफूज़ रहे
नाजुक ह्रदय
मेरी प्रीत का....
इस बरस
हर बरस
मौत तलक
मेरी-तेरी प्रीत का.....

शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

उकेरा रेत पर....संग तेरा...

संग तेरा
रेत पर पड़ी
लकीरों सा
सहेजा
कितने जतन से...
एक लहर
समंदर की
बहा ले गई
सब कुछ...
तकता रहा
उस विशाल
निर्दयी
समंदर को....
काश होता
तेरा साथ
पत्थर पर
धीमे धीमे पड़ी
लकीरों सा...

..........बदरा बरसो जरा............


बदरा बरसो ज़रा....
धीमे धीमें
देख ना ले कोई
नयनों से बहता
नीर मेरा .
कोई ऊँगली
ना उठे
मेरी तरफ़
पोंछने को
नीर मेरा
बदरा बरसो जरा .....
लग ना जाए
फ़िर कोई
तोहमत
उस पर
के बहा नीर
देख उसे
बदरा बरसो ज़रा...

सपनो की नदी....

सपनों की नदी पर
हर रातबनता
एक पुल मैं।

गुजरती
तेरी यादों की रेल
और महसूसता
हर पल
उसकी थरथराहट को.

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

सपनो के जहाँ में




चलो
सपनो के जहाँ में
फ़िर चलते हैं
किसी अपने से
फ़िर मिलते हैं....



जहाँ न हों
नजरें ज़माने की
छुप छुपकर फ़िर तनहा
सपनों में मिलते हैं.....


रोके न रुके
ऐसा जहाँ
सपनों की नदियाँ
और कश्ती पर तनहा
हम-तुम
चलो सपनों में
फ़िर मिलते हैं.....

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

क्यों कुरेदा


कल

सुबह

पदचाप तेरी

मुझ तलक

आने लगी ,

क्यों कुरेदा

उन पलों को

राख में जो
दब

गए

बेडियाँ.....तेरी खुशियों की


बेडियाँ
मेरे पग
तेरी
खुशियों की

तुझे भूलना

तो न चाहूँ ,
बस
इक दीप
रोशन रहे
तेरे नयन
मेरी प्रीत का

टुकडा भर धुप

टुकडा भर धुप
और तेरा साथ
सहेजा था
मुट्ठी में.

मुट्ठी में बंधी रेत सा
कण कण
न जाने कहाँ
बिखर गया
और रह गयी
खाली खाली
मुट्ठी मुट्ठी मेरी
बस तेरा
एहसास लिए

सोमवार, 14 जुलाई 2008

दर्द शब्दों में ढले......


दर्द शब्दों में ढले

तो गीत होता हैं

भावना के सुर सजे

संगीत होता हैं

रूप की चाहत तो

तन के साथ हैं

बावरे मन का न कोई

मीत होता हैं

वे भी तो मेरे दोस्त थे



वे भी तो मेरे दोस्त थे

जो देते रहे फरेब

मोहब्बत के नाम पर

पहले आप

पहले आप
आप से तुम
तुम से तू
और फिर कहने की नहीं
समझने की बात हैं