मंगलवार, 15 जुलाई 2008

क्यों कुरेदा


कल

सुबह

पदचाप तेरी

मुझ तलक

आने लगी ,

क्यों कुरेदा

उन पलों को

राख में जो
दब

गए

बेडियाँ.....तेरी खुशियों की


बेडियाँ
मेरे पग
तेरी
खुशियों की

तुझे भूलना

तो न चाहूँ ,
बस
इक दीप
रोशन रहे
तेरे नयन
मेरी प्रीत का

टुकडा भर धुप

टुकडा भर धुप
और तेरा साथ
सहेजा था
मुट्ठी में.

मुट्ठी में बंधी रेत सा
कण कण
न जाने कहाँ
बिखर गया
और रह गयी
खाली खाली
मुट्ठी मुट्ठी मेरी
बस तेरा
एहसास लिए