रविवार, 20 दिसंबर 2009

चल दिए छोड़ कर तनहा


हौले हौले
ऊँगली थाम
चलना सिखाया तुमने
जिन्दगी की पथरीली राहों पर
फिर चल दिए
छोड़कर मुझे तनहा
उन्ही पथरीली राहों में

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

फ़िर चुपके से




फ़िर चुपके से



ख्वाबों को सजा गया कोई



हौले से कानों में



गुनगुना गया कोई



मुद्दत से तरस रहे थे जिनके दीदार को



एक झलक दिखला गया कोई



वादा तो था गुप्तगू का



लेकिन सिर्फ़ मुस्करा गया कोई



इस जनम तरसा करे जिनके संग को



अगले सात जनम हमारे नाम लिख गया कोई

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

चल पाखी....कहीं दूर चलते हैं

चल पाखी
कहीं दूर
बहुत दूर
चलते हैं ।
इस जनम
न हैं संग
तेरा मेरा
यही कहा था
तुने कभी
हौले से ।
तो फ़िर
इंतज़ार में
अगले जनम के
चल कही दूर
बहुत दूर
हम तुम चलते हैं ।

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

कब तलक.... तकु तेरी राह

आओगे
या यूँ ही
इंतज़ार में
मुझे तनहा
छोड़ जाओगे
बसंत गया
पतझड़ आया
लेकिन
तू न आया
आओगे कब
या यूँ ही सताओगे
राहो में मुझे
तनहा छोड़ जाओगे

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

rishte.......

रिश्तों ने तो
विष ही घोला
रिश्ते - रिसते
चटके चटखे
भुला दिए सब
रिश्ते नाते
याद यही बस
संगी साथी

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

सफर जिन्दगी का...


कल कल कर
बहना ही हैं
नियति मेरी
कभी वीराने
तो कहीं महफिलों से
सज जाता मेरा तट
कहीं जश्न तो कहीं
मातम होता मेरे तट ।
छलक जाता
नयनों से नीर
कभी खुशी और कभी गम का
घुल जाता मेरे संग
लेकर चलता, लेकर बहता
उन पलों को दूर कहीं
चलना मेरी नियति
तनहा तनहा
शायद हूँ में
साथी बस एक पल का
तनहा तनहा