शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

उकेरा रेत पर....संग तेरा...

संग तेरा
रेत पर पड़ी
लकीरों सा
सहेजा
कितने जतन से...
एक लहर
समंदर की
बहा ले गई
सब कुछ...
तकता रहा
उस विशाल
निर्दयी
समंदर को....
काश होता
तेरा साथ
पत्थर पर
धीमे धीमे पड़ी
लकीरों सा...

..........बदरा बरसो जरा............


बदरा बरसो ज़रा....
धीमे धीमें
देख ना ले कोई
नयनों से बहता
नीर मेरा .
कोई ऊँगली
ना उठे
मेरी तरफ़
पोंछने को
नीर मेरा
बदरा बरसो जरा .....
लग ना जाए
फ़िर कोई
तोहमत
उस पर
के बहा नीर
देख उसे
बदरा बरसो ज़रा...

सपनो की नदी....

सपनों की नदी पर
हर रातबनता
एक पुल मैं।

गुजरती
तेरी यादों की रेल
और महसूसता
हर पल
उसकी थरथराहट को.