शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

उकेरा रेत पर....संग तेरा...

संग तेरा
रेत पर पड़ी
लकीरों सा
सहेजा
कितने जतन से...
एक लहर
समंदर की
बहा ले गई
सब कुछ...
तकता रहा
उस विशाल
निर्दयी
समंदर को....
काश होता
तेरा साथ
पत्थर पर
धीमे धीमे पड़ी
लकीरों सा...

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