मंगलवार, 20 जनवरी 2009

सफर जिन्दगी का...


कल कल कर
बहना ही हैं
नियति मेरी
कभी वीराने
तो कहीं महफिलों से
सज जाता मेरा तट
कहीं जश्न तो कहीं
मातम होता मेरे तट ।
छलक जाता
नयनों से नीर
कभी खुशी और कभी गम का
घुल जाता मेरे संग
लेकर चलता, लेकर बहता
उन पलों को दूर कहीं
चलना मेरी नियति
तनहा तनहा
शायद हूँ में
साथी बस एक पल का
तनहा तनहा