शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

तुम न बोलो

चमक नयनों की
कह देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
मुस्कान
लबों की
रच देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
थिरकन
अंगों की
कह देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
सिंदूरी अबीर
लुढका हुवा
गालों पर
कह देगा
सब कुछ
तुम ना बोलो

सकुचाते.....हौले हौले


सकुचाते
हौले हौले
अपने क़दमों को आगे बढ़ाते
सकुचाते - शरमाते
मुझसे कितना कुछ छुपाते
धीमे से कुछ न कुछ कह ही जाते
तरसाते
तन्हाई में
पल पल याद आते
और तुम
मेरी आतुरता पर
बस मुस्करा जाते
तुमने सताया
फिर मैंने
एहसासों से तुझे
हकीक़त में
सामने पाया ।