बुधवार, 30 जुलाई 2008

क्यों आते हो...छलकर चले जाते हो..

आ कर
फ़िर चले जाते हो
जैसे
तपती दोपहरी
कोई
तलाशे छांह
एक पल की...
आते हो
सुकून पाते हो
भावनाओं के समंदर में
तनहा छोड़ जाते हो
क्यूँ आते हो
फ़िर चले जाते हो......
आते हो
फ़िर लुभाते हो
अपने पल-दो-पल
संग बिताते हो
खुशियाँ पाते हो
फ़िर मुझे तपता हुवा
मरुस्थल में तनहा
छोड़ जाते हो...
छलकर जाते हो
क्यों आते हो
बार-बार
फ़िर तुम
मेरी जिन्दगी में.....

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