मंगलवार, 20 जनवरी 2009

सफर जिन्दगी का...


कल कल कर
बहना ही हैं
नियति मेरी
कभी वीराने
तो कहीं महफिलों से
सज जाता मेरा तट
कहीं जश्न तो कहीं
मातम होता मेरे तट ।
छलक जाता
नयनों से नीर
कभी खुशी और कभी गम का
घुल जाता मेरे संग
लेकर चलता, लेकर बहता
उन पलों को दूर कहीं
चलना मेरी नियति
तनहा तनहा
शायद हूँ में
साथी बस एक पल का
तनहा तनहा

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

बढ़ते जाइये इस सफर में. स्वागत.

बेनामी ने कहा…

Kalam Ke Safar Ki niymit Jari Rakhe.

Fakeer Mohammad Ghosee

दिगम्बर नासवा ने कहा…

छलक जाता
नयनों से नीर
कभी खुशी और कभी गम का
घुल जाता मेरे संग
लेकर चलता, लेकर बहता
उन पलों को दूर कहीं

खुशी, गम और तन्हाई को समेटे अच्छी रचना ....स्वागत है आपका

Mishra Pankaj ने कहा…

Nice post u r most welcome at my blog

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

chalane ka naam hee jeevan hai. narayan narayan