गुरुवार, 17 जुलाई 2008

सपनो के जहाँ में




चलो
सपनो के जहाँ में
फ़िर चलते हैं
किसी अपने से
फ़िर मिलते हैं....



जहाँ न हों
नजरें ज़माने की
छुप छुपकर फ़िर तनहा
सपनों में मिलते हैं.....


रोके न रुके
ऐसा जहाँ
सपनों की नदियाँ
और कश्ती पर तनहा
हम-तुम
चलो सपनों में
फ़िर मिलते हैं.....

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

राकेश जी
इतने खूबसूरत ब्लॉग के लिए हार्दिक बधाई
सपनों के जहाँ ख़ुद ही खूबसूरत होते हैं
और फिर आपके शब्दों ने तो उसे में चार चाँद लगा दिए
लिखते रहिये