भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर
मंगलवार, 6 नवंबर 2012
कभी याद आता हूँ मै
चन्दा बिखेरता
अपना नूर
सूनी आँखों
तकते तुम
तब कभी याद आता हूँ मै
पाने को आतुर
अपने तट को
दौड़ पड़े जब लहरे
तब कभी याद आता हूँ मै
दूर क्षितिज
जब ढले सूरज
खोकर कुछ पल
तब कभी याद आता हूँ मै
फासला है
तेरा मेरा
उस दूर क्षितिज सा
फिर भी कभी
याद आता हूँ मै
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें