भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर
मंगलवार, 15 जुलाई 2008
टुकडा भर धुप
टुकडा भर धुप और तेरा साथ सहेजा था मुट्ठी में.
मुट्ठी में बंधी रेत सा कण कण न जाने कहाँ बिखर गया और रह गयी खाली खाली मुट्ठी मुट्ठी मेरी बस तेरा एहसास लिए
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