
रेत पर पड़ी
लकीरों सा
सहेजा
कितने जतन से...
एक लहर
समंदर की
बहा ले गई
सब कुछ...
तकता रहा
उस विशाल
निर्दयी
समंदर को....
काश होता
तेरा साथ
पत्थर पर
धीमे धीमे पड़ी
लकीरों सा...
भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर