भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
सपनो की नदी....
सपनों की नदी पर हर रातबनता एक पुल मैं। गुजरती तेरी यादों की रेल और महसूसता हर पल उसकी थरथराहट को.
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