भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर
गुरुवार, 24 जुलाई 2008
समंदर........मेरी प्रीत का..
समंदर लहराता रहे चंचल नयन मेरी प्रीत का.... मुस्कान थिरकती रहे गुलाबी अधर मेरी प्रीत की...... अबीर लुढ़का रहे सुर्ख गालों पर मेरी प्रीत का.... एक कोना महफूज़ रहे नाजुक ह्रदय मेरी प्रीत का.... इस बरस हर बरस मौत तलक मेरी-तेरी प्रीत का.....
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