एक लम्हा.....एक गीत
भावनाओं को शब्द आकार देते हैं, जुबान कभी शब्दों को बयां नहीं कर पाती, उन पलों को सहेजना ही कविता हैं. अनकहें पलों और जज्बातों को उकेरना ही सुकून देता हैं. सच बोलने और सहने का साहस आज किसी में नहीं, बस इसीलिए जो महसूस करो, उसे उकेर दो कागज पर
बुधवार, 6 अगस्त 2014
शुक्रवार, 29 मार्च 2013
गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013
मंगलवार, 6 नवंबर 2012
बुधवार, 1 जून 2011
भुला सकोगे मुझे
चांदनी थिरकेगी
जब पूनम की रात
भुला सकोगे मुझे
दूर कहीं कोई चातक
करेगा पीहू पीहू
भुला सकोगे मुझे
लुभाएगा कोई मयूर
प्रेमिल नृत्य से प्रियतम को
भुला सकोगे मुझे
चला जाऊँगा दूर कहीं
किसी अनजानी राह पर
भुला सकोगे मुझे
हौले हौले बरसता नेह तेरा
की नन्ही बूंदों सा
हौले हौले
बरसता नेह तेरा
खो गया था
जो कहीं
फिर कभी
हौले हौले
याद आता
नेह तेरा
बरखा की नन्ही बूंदों सा
नेह तेरा
मंगलवार, 31 मई 2011
शनिवार, 13 मार्च 2010
छुपा लो नयनों में ... प्रीत मेरी
मेरी प्रीत का
छुपा लो कितना भी
लबों पर आती प्रीत मेरी
कर लो कैद कितनी भी
दिल में प्रीत मेरी
कह देंगे सब कुछ
तेरे नयना
प्रीत मेरी .
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
अच्छा लगता हैं
तेरा नाम लिए
मेरी सुबह होती हैं
तेरा नाम लिए
तू अपना हैं
या बेगाना
लेकिन अच्छा लगता हैं
पल दो पल तेरे संग
बिताना अच्छा लगता हैं
रोज तुझसे बहाने बनाकर
जाना अच्छा लगता हैं
बस इक झलक भी
तेरी पाना
अच्छा लगता हैं
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
वजूद मेरा...इस झील सा
वजूद मेरा
इस नशीली झील सा ।
न हलचल
शांत हैं
वजूद मेरा
इस निर्दयी झील सा ।
लील गयी
कितना जल
कितने अरमान
इस निर्मोही झील सा ।
शांत हूँ
दफ़न किये
लाखों अरमान
इस बेदर्द झील सा ।
शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
उड़ जाऊंगा... दूर कही
दूर कहीं
इस नीले नभ में
खो जाऊंगा
फिर कहीं
इस नीले नभ में
उब गया हूँ
ऐ जिन्दगी
अब तुझसे
खो जाना चाहता हूँ
इसी नभ में
इक पाखी सा
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
तनहा हूँ मैं
संगी मेरे
तुझ बिन ।
इक पल
अंधियारी जिंदगानी में
झांक गए तुम
मीत मेरे
काटना ही हैं
सफ़र
मुझे तो तनहा
सुकून देता
कोई
बस इक पल का.
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
तुम न बोलो
कह देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
मुस्कान
लबों की
रच देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
थिरकन
अंगों की
कह देगी
सब कुछ
तुम ना बोलो
सिंदूरी अबीर
लुढका हुवा
गालों पर
कह देगा
सब कुछ
तुम ना बोलो
सकुचाते.....हौले हौले
रविवार, 20 दिसंबर 2009
चल दिए छोड़ कर तनहा
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
फ़िर चुपके से
फ़िर चुपके से
ख्वाबों को सजा गया कोई
हौले से कानों में
गुनगुना गया कोई
मुद्दत से तरस रहे थे जिनके दीदार को
एक झलक दिखला गया कोई
वादा तो था गुप्तगू का
लेकिन सिर्फ़ मुस्करा गया कोई
इस जनम तरसा करे जिनके संग को
अगले सात जनम हमारे नाम लिख गया कोई
मंगलवार, 1 दिसंबर 2009
चल पाखी....कहीं दूर चलते हैं
कहीं दूर
बहुत दूर
चलते हैं ।
इस जनम
न हैं संग
तेरा मेरा
यही कहा था
तुने कभी
हौले से ।
तो फ़िर
इंतज़ार में
अगले जनम के
चल कही दूर
बहुत दूर
हम तुम चलते हैं ।
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
कब तलक.... तकु तेरी राह
आओगे
या यूँ ही
इंतज़ार में
मुझे तनहा
छोड़ जाओगे
बसंत गया
पतझड़ आया
लेकिन
तू न आया
आओगे कब
या यूँ ही सताओगे
राहो में मुझे
तनहा छोड़ जाओगे
सोमवार, 9 फ़रवरी 2009
मंगलवार, 20 जनवरी 2009
सफर जिन्दगी का...
शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
तन्हाई....लुभाती हैं मुझे
बुधवार, 30 जुलाई 2008
क्यों आते हो...छलकर चले जाते हो..
आ कर
फ़िर चले जाते हो
जैसे
तपती दोपहरी
कोई
तलाशे छांह
एक पल की...
आते हो
सुकून पाते हो
भावनाओं के समंदर में
तनहा छोड़ जाते हो
क्यूँ आते हो
फ़िर चले जाते हो......
आते हो
फ़िर लुभाते हो
अपने पल-दो-पल
संग बिताते हो
खुशियाँ पाते हो
फ़िर मुझे तपता हुवा
मरुस्थल में तनहा
छोड़ जाते हो...
छलकर जाते हो
क्यों आते हो
बार-बार
फ़िर तुम
मेरी जिन्दगी में.....
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
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